Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2009

यादों के जुगनू

हर रात बत्तियां भुझते ही तेरे खवाब फ़िर रोशन करता हूँ, टिमटिमाते यादों के जुगनुओं को मुट्ठियों में भर लेता हूँ , सलवटों में बिखरी तेरी खुशबू किसी तेजाब से कम नही, रूह में गहरे उतरे सुराख आज भी कम नही, एक जुगनू मिला था बालकनी की रेलिंग पे, पकड़ा तो सर्द हवा ने पलकों को बहा दिया, एक टीमतिमाया कोफी के मग पे, पिया तो हर प्याला जहन-0- दिल सुखा गया, ड्रेसिंग टेबल पे भी एक जुगनू मिला, छुआ तो सीशे में मेरे ही अक्स ने मुझे डरा दिया, परदे के कोने से जब पहला उजाला आता है, सब जुगनुओ को तकिये के नीचे छिपा देता हूँ यादों को हकीकत की रोशनी से भस्म होने से बचा लेता हूँ, रात तो फ़िर होगी, दिन भर उसी का इंतज़ार करूँगा , तकिये के नीचे सर रख आज फ़िर जुगनुओ से बातें करूँगा !

विद्यालय

आफिस के एयर कंडीशंड केबिन से इस बार वक्त मिला तो, अपने प्राईमरी स्कूल के बरामदों में फ़िर झाँका| प्रान्गड़ अब मेरे जमे और मजबूत पैरो के लिए छोटा लगा, दोपहर में थपकी देता गरम झोंका अपना सा लगा | कक्षा के बाहर न नहे हाथ उठाये, दो आँखें और एक शरारती मुस्कराहट पहचानी सी लगी !! चस्मा उतारा, जेबे टटोली, कुरता झाडा पता चला मैंने उसे खो दिया, कब?? कहाँ ?पता नही ! फ़िर से उस हाथ उठाये चेहरे में झाँका अरेयह तो वोही शरारत और मासूमियत थी जिसे मैं गुमा आया था | बरसो बाद उस खोयी मासूमियत को देख पलकों पे बदली छा गई , आँखें डबडबायी तो कुछ कंकर झड़ के रह गए बस , कंक्रीट के जंगल में रह कर शायद सब पथरा गया था! मैं गूढ़ तो बन गया पर शायद गहरायी सारा पानी पी गई , अन्दर पानी खत्म था अब या सब बर्फा गया था क्यूंकि ना लहरें उठती है अब और ना ही वोह तपन थी !! बरगद के नीचे मोरल साइंस की कक्षा लग रही थी , कोहरायी सी बच्चो की गूँज दूर से ही सुनाई रही थी , हर गूँज में इंसानियत का एक सबक था , हर गूँज अन्दर जमी बर्फ को छलनी कर रही