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Showing posts from April, 2010

कहाँ खो गए रास्तें

This verse is dedicated to a person whom i spent very very wonderful time with and whom i have loved very much.Sometimes life has something else in store, so not necessary that there will always be same kind of time. कहाँ खो गए वोह रास्ते, साथ चले थे हम हस्ते हस्ते! वोह शख्स शायद मेरा ही अक्स था, इश्क में जिसके मैं मदमस्त था! कई जन्मो का नाता था कोई, लगता था अपना हमसफ़र,हमराही वोही! चिलचिलाती धूप में धडधडाती मोटरबाइक पे, काँधे पे रखा सर, शीतल छाया सा लगता, तू नहीं, तो छाया में भी, दिल सताया सा लगता! याद है बरसात में टपकती टपरी, हर पल में भरी बातें, चाय और मठरी, अब बरसात थम गयी, दिल गीला है और हर पल सूखा; तुझे अब भी उस टपरी पे याद करता हूँ, बस अब सूखे पल दिल में डुबो के खाता हूँ! याद है गणपति-मंदिर की सीढ़ी पे तेरा सारथि और मेरा पार्थ बनना फिर घर-ऑफिस के कुरुक्षेत्र में लड़े युद्ध पर चर्चा करना या फिर गोल-गप्पे खिला कर मुझ पर कभी-कभी खर्चा करना, अब तू नहीं तो, मंदिर में गणपति भी मुझे अनजाना ,पराया,पथराया सा लगता है, गोलगप्पे का पानी क्यूँ आँखों में उतर आया सा लगता है! याद है गुल बिजली