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Showing posts from December, 2014

आतंकवाद का ब्लैक होल

स्याहा  है, सब  काला स्याहा है, रोशनियाँ जो कुछ पल पहले जली, अब बुझ गयी अँधेरा ऐसा ब्लैक होल के जैसा भयावह, अनंत, निष्ठुर , ठंडा , बस लहू का प्यासा उम्मीदों की किरणों को भी बस पीता ही जाये ये कैसा बदला है जिसने अनगिनत सूरजों को निगल लिया ये कैसा बदजात  बारूद है, जो नन्हों को मारने बन्दूको से निकल भी गया ??? शोक के दरिये बहा, तुमने क्या हासिल किया? On "another darkest day" in humanity ( Taliban attacks in Peshawar)