नाम है मेरा " इमानदार इन्सान , घर खर्चा चलाता जिसका भगवान् ! इस शहर में अक्सर तुम मुझे पाओगे , मौका मिले तो , किस्मत के साथ तुम भी सताओगे ! वहां उस बस की खिड़की से झांकता वोह चेहरा, या फिर थोड़ी सी कमाई पूँजी को हर पल देता पहरा ! धूप में मीलो चलते , धुएं खाता , शरीर से टपकता पसीना , या फिर कैद किये हज़ारो अरमान दिल यह कमीना ! मैं हूँ वोही एक आदमी आम, किराये के घर में भरा जिसके पुराना सामान ! कुछ साल पहले सुना एक शब्द प्रोपर्टी , लगा शायद अमीरों की होगी कोई अंग्रेजी झोंपड़ी ! पर जब देखा किराने की दुकानवाला भी है , फ्लैट का मालिक , अरमानो , अपेक्षायो के धक्के से गिरना इस जाल में था स्वाभाविक ! तो अन्धादुंध रेस में पनप उठा मेरा भी सपना , भागते शहर में जहाँ थम सकू , छोटा सा ऐसा घर हो अपना ! दिन भर के कठिन सफ़र , मिले एक मंजिल शांत, निडर हो , छुपकर देख सकू कुछ सपने हर रात ! रोशनदानो से उतरी शाम के आँचल तले लू गहरी सांस , खवाबो से कांपती...
The verses have been originated from my personal thoughts, countless experiences, emotions and moments.They are as free as i m.Hopefully they will carry the ripple of life to the reader.Enjoy reading!!