I wrote this verse some years ago on the request of one of dear friend.Today i am sharing with you all here. खाली सा आसमान था, खाली सा एक मंज़र, उस खालीपन में हर पल भी, खाली सा हो रहा था| उस मंज़र के खालीपन को समेटती मेरी आँखें मानो, एक अँधा कुआँ सा था | ना कोई आवाज़ थी, ना कोई हलचल, ऐसे में तो सन्नाटा भी सो रहा था| उस सन्नाटे ने, उस ख़ामोशी ने, उस खालीपन ने , ना जाने कब, मेरी आँखों में पनाह पा ली| ना कोई कुछ कहता , ना कोई कुछ मांगता , आँखें .. आँखें तो बस मंज़र को निशब्द हो कर ताकती रहती| फिर वोह एक पल आया, जब एक आइना सामने आ गया , कुछ अन्दर कैद था , हुबहू मुझ जैसा, पर ना जाने क्यों बिलखने और बिखरने को तैयार | आँखें बस उस एक साए को ना समां पायी , शायद जिसने सबको समां लिया, वोह खुद ही की गहराई में डूब रही थी, खुद ही की ख़ामोशी में बहरा गयी थी, अंधे कुए में भी ना जाने कैसे पानी सा आ गया | जो कुछ था बहने लगा खालीपन, सन्नाटा, और ख़ामोशी सब कोई रुकसत करने लगे | पर फिर भी आँखों में , उस अक्स के लिए जगह कम पड़ गयी , वोह पनाह नहीं पा सकी|
The verses have been originated from my personal thoughts, countless experiences, emotions and moments.They are as free as i m.Hopefully they will carry the ripple of life to the reader.Enjoy reading!!