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विद्यालय

आफिस के एयर कंडीशंड केबिन से इस बार वक्त मिला तो,
अपने प्राईमरी स्कूल के बरामदों में फ़िर झाँका|

प्रान्गड़ अब मेरे जमे और मजबूत पैरो के लिए छोटा लगा,
दोपहर में थपकी देता गरम झोंका अपना सा लगा |


कक्षा के बाहर नहे हाथ उठाये,
दो आँखें और एक शरारती मुस्कराहट पहचानी सी लगी !!


चस्मा उतारा, जेबे टटोली, कुरता झाडा
पता चला मैंने उसे खो दिया,

कब?? कहाँ ?पता नही !

फ़िर से उस हाथ उठाये चेहरे में झाँका
अरेयह तो वोही शरारत और मासूमियत थी
जिसे मैं गुमा आया था |


बरसो बाद उस खोयी मासूमियत को देख
पलकों पे बदली छा गई ,
आँखें डबडबायी तो कुछ कंकर झड़ के रह गए बस ,
कंक्रीट के जंगल में रह कर शायद सब पथरा गया था!

मैं गूढ़ तो बन गया पर शायद गहरायी सारा पानी पी गई,
अन्दर पानी खत्म था अब या सब बर्फा गया था
क्यूंकि ना लहरें उठती है अब और ना ही वोह तपन थी !!

बरगद के नीचे मोरल साइंस की कक्षा लग रही थी,
कोहरायी सी बच्चो की गूँज दूर से ही सुनाई रही थी,
हर गूँज में इंसानियत का एक सबक था,
हर गूँज अन्दर जमी बर्फ को छलनी कर रही थी
शायद अब कुआ भर जाए और सूखी आँखों पे कुछ बूँदें पड़ जाएँ!

ये मेरा विद्यालय है,
जीवन के मूल्यों का बीज इसी ने मेरे अन्दर डाला,

भीड़ को देख मैं भी प्रक्टिअल आदमी तो बन गया
पर बचपन में पढ़े पन्ने ही आज भी सुकून देते है,

पन्नो को रोजमर्रा में लिखने की कोशिश तो बहुत की
पर कभी अपनों की पहाड़ जैसी उम्मीदों ने,
तो कभी सिस्टम की शिथिलता ने थका डाला

श्याही सूख गई थी , मैं भी थक गया था,
पर आज फ़िर
से नया अंकुर फूटा है,
पुराने पन्नो को फ़िर से दोहराया है
विद्यालय ने मिटटी से मुझे फ़िर इंसान बनाया है!!

Comments

  1. nice one ashwani.. btw mujhe kuch kuch word thode difficult lage..

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