गए हफ़्ते बारिश की बूँदों को अलविदा कहा!! वक़्त ज़रा तनहाइयों में गुज़रा सूनि आँखों में शरद का रास्ता देख रहा था... कल रात दूधिया चाँदनी और बादामी रात में यादों के मीठे चावल पकाकर बालकनी में रखे भी थे पर.. सुबह की चीख़ती रोशनियों ने जब ज़ोर से दस्तक दी.. तो शरद की झूठी खीर को चखना भूल गया... पर क्या हुआ शाम तो फिर भी आएगी, दिन भर चाँद और शरद दोनो का बालकनी में इंतज़ार रहेगा...
स्याहा है, सब काला स्याहा है, रोशनियाँ जो कुछ पल पहले जली, अब बुझ गयी अँधेरा ऐसा ब्लैक होल के जैसा भयावह, अनंत, निष्ठुर , ठंडा , बस लहू का प्यासा उम्मीदों की किरणों को भी बस पीता ही जाये ये कैसा बदला है जिसने अनगिनत सूरजों को निगल लिया ये कैसा बदजात बारूद है, जो नन्हों को मारने बन्दूको से निकल भी गया ??? शोक के दरिये बहा, तुमने क्या हासिल किया? On "another darkest day" in humanity ( Taliban attacks in Peshawar)