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आतंकवाद का ब्लैक होल

स्याहा  है, सब  काला स्याहा है,
रोशनियाँ जो कुछ पल पहले जली, अब बुझ गयी
अँधेरा ऐसा ब्लैक होल के जैसा
भयावह, अनंत, निष्ठुर , ठंडा , बस लहू का प्यासा
उम्मीदों की किरणों को भी बस पीता ही जाये

ये कैसा बदला है जिसने अनगिनत सूरजों को निगल लिया
ये कैसा बदजात  बारूद है, जो नन्हों को मारने बन्दूको से निकल भी गया ???
शोक के दरिये बहा, तुमने क्या हासिल किया?

On "another darkest day" in humanity ( Taliban attacks in Peshawar)


Comments

  1. Wish I could write half good as you do in hindi - very well expressed

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सर्द राहो पे अरसे से चलते हुए, जब मेरे विश्वास की ठिठुरन बढ़ी, तभी होसलो की कोहरायी धूप ने मुंडेर पे होले से दस्तक दी | धूप देख, फिर से रूह  में अरमानो की बदली छाई, शितिलता की चट्टानें तोड़, हिम्मत की कुछ लहरें आई ! चलो आज फिर आँखों की सलायीयों में   कुछ लाल, पीले, हरे ख्वाब बुने, आज फिर रंगीन ऊनी गोलों में उस अंतहीन बेरंग गगन से लुकाछिपी खेले ! गयी सर्दी में ख्वाबो का स्वेअटर अधूरा रह गया था आस्तीनों पे कुछ धारीदार इच्छाएं उकेरी थी, कांधे पे कुछ लोग पिरोये थे, हलके रंग से थोडा प्यार बुना था और रुमनियात में भी कुछ फंदे डाले थे| इस मौसम में जब ट्रंक खोला तो देखा, स्वेअटर में से कुछ रिश्ते उधड गए है, दर्द के कुछ काले गहरे दाग छ़प गए है, अकेलेपन की धूल,स्वेअटर पे चढ़ी बैठी है| हर जाड़े,गए मौसम के कुछ लत्ते सुकून दे जाते हैं, वोह उधडे रिश्ते,वोह बिखरे लोग बड़े याद आते हैं, देख उन्हें आँखें नम अंगार बरसाती है, क्यूँ यह सर्दी हर बार इतना दिल सुलगाती है| पर क्या यह सिर्फ आज का सवाल है, यह तो हर साल,दिल का बवाल है तो क्यूँ ना फिर से नए रास्ते चुने, क

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