सर्द राहो पे अरसे से चलते हुए,
जब मेरे विश्वास की ठिठुरन बढ़ी,
तभी होसलो की कोहरायी धूप ने
मुंडेर पे होले से दस्तक दी |
धूप देख, फिर से रूह में
अरमानो की बदली छाई,
शितिलता की चट्टानें तोड़,
हिम्मत की कुछ लहरें आई !
चलो आज फिर आँखों की सलायीयों में
कुछ लाल, पीले, हरे ख्वाब बुने,
आज फिर रंगीन ऊनी गोलों में
उस अंतहीन बेरंग गगन से लुकाछिपी खेले !
गयी सर्दी में ख्वाबो का स्वेअटर अधूरा रह गया था
आस्तीनों पे कुछ धारीदार इच्छाएं उकेरी थी,
कांधे पे कुछ लोग पिरोये थे,
हलके रंग से थोडा प्यार बुना था
और रुमनियात में भी कुछ फंदे डाले थे|
इस मौसम में जब ट्रंक खोला तो देखा,
स्वेअटर में से कुछ रिश्ते उधड गए है,
दर्द के कुछ काले गहरे दाग छ़प गए है,
अकेलेपन की धूल,स्वेअटर पे चढ़ी बैठी है|
हर जाड़े,गए मौसम के कुछ लत्ते सुकून दे जाते हैं,
वोह उधडे रिश्ते,वोह बिखरे लोग बड़े याद आते हैं,
देख उन्हें आँखें नम अंगार बरसाती है,
क्यूँ यह सर्दी हर बार इतना दिल सुलगाती है|
पर क्या यह सिर्फ आज का सवाल है,
यह तो हर साल,दिल का बवाल है
तो क्यूँ ना फिर से नए रास्ते चुने,
क्यूँ ना फिर आती ऋतू की फरमाइश भी सुने,
चलो आँखों की सलायीयों में फिर,
कुछ लाल, हरे, पीले ख्वाब बुने|
जब मेरे विश्वास की ठिठुरन बढ़ी,
तभी होसलो की कोहरायी धूप ने
मुंडेर पे होले से दस्तक दी |
धूप देख, फिर से रूह में
अरमानो की बदली छाई,
शितिलता की चट्टानें तोड़,
हिम्मत की कुछ लहरें आई !
चलो आज फिर आँखों की सलायीयों में
कुछ लाल, पीले, हरे ख्वाब बुने,
आज फिर रंगीन ऊनी गोलों में
उस अंतहीन बेरंग गगन से लुकाछिपी खेले !
गयी सर्दी में ख्वाबो का स्वेअटर अधूरा रह गया था
आस्तीनों पे कुछ धारीदार इच्छाएं उकेरी थी,
कांधे पे कुछ लोग पिरोये थे,
हलके रंग से थोडा प्यार बुना था
और रुमनियात में भी कुछ फंदे डाले थे|
इस मौसम में जब ट्रंक खोला तो देखा,
स्वेअटर में से कुछ रिश्ते उधड गए है,
दर्द के कुछ काले गहरे दाग छ़प गए है,
अकेलेपन की धूल,स्वेअटर पे चढ़ी बैठी है|
हर जाड़े,गए मौसम के कुछ लत्ते सुकून दे जाते हैं,
वोह उधडे रिश्ते,वोह बिखरे लोग बड़े याद आते हैं,
देख उन्हें आँखें नम अंगार बरसाती है,
क्यूँ यह सर्दी हर बार इतना दिल सुलगाती है|
पर क्या यह सिर्फ आज का सवाल है,
यह तो हर साल,दिल का बवाल है
तो क्यूँ ना फिर से नए रास्ते चुने,
क्यूँ ना फिर आती ऋतू की फरमाइश भी सुने,
चलो आँखों की सलायीयों में फिर,
कुछ लाल, हरे, पीले ख्वाब बुने|
आपके ख्वाब हकीकत में बदलें. स्वागत.
ReplyDeleteसदाबहार देव आनंद
bohot hi sundar rachna hai..... must say ... u r really very creative :)
ReplyDeletekeep writing :)
"तो क्यूँ ना फिर से नए रास्ते चुने,
ReplyDeleteक्यूँ ना फिर आती ऋतू की फरमाइश भी सुने,
चलो आँखों की सलायीयों में फिर,
कुछ लाल, हरे, पीले ख्वाब बुने|"
waah
bahut sundar
padhkar achha laga
aabhaar
अनूठे बिम्बों से सजी बहुत सुंदर रचना - अश्वनी जी बधाई
ReplyDeletemai abhibhoot hua aap sabhi rachnakaaro dwara protsahaan paakar..tahe-dil se shukriya!
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
http://najariya.blogspot.com/
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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